मूलभूत समस्याओं के लिए धनाभाव, लेकिन धनपशुओं की कर्जमाफी एवं चुनावी खर्च से कराहते राजकोष पर विशेष


सम्पादकीय - भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

साथियों,

हमारे देश का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि देश के आम जनमानस खासतौर से गरीबों मजदूरों किसानों ग्रामीणों से जुड़ी तमांग जन समस्याओं का निदान धनाभाव में नहीं हो पा रहा है। सरकार चाह कर भी आजादी के छह दशक बीत जाने के बावजूद अब तक धना भाव में इन मूलभूत समस्याओं का निदान करके देश की जनता को राहत नहीं दे पा रही है। दूसरी तरफ जहां हमारे देश का करोड़ों रुपया बड़े-बड़े धनपशु लोग लेकर विदेश भाग रहे हैं तो वही दूसरी ओर करोड़ों अरबों रुपया उद्योगपतियों का हर साल माफ किया जा रहा है। इतना ही नहीं करोड़ों अरबों रुपया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर सरकारी खजाने को खाली कर रहा है और हर 5 साल देश का अरबों खरबों रुपया राजनीतिक दल अपनी राजनीति को चमकाने एवं चुनाव लड़ने पर पानी की तरह बहा कर चुनाव जीतने पर खर्च कर रहे हैं। इसी तरह सरकारी खजाने का करोड़ों अरबों रुपया चुनाव कराने के नाम पर खर्च हो रहा है। सरकारी खर्चा एवं लूट सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद घटने की जगह लगातार बढ़ता ही जा रही है।

बीते पिछले 5 वर्षों के अंदर करोड़ों अरबों रुपया जहां लुट चुका है वहीं करोड़ों रुपया भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ चुका है जिसे सरकार चाहकर भी रोक नहीं सकी है। इस लोकतांत्रिक देश में चुनाव कराने के नाम पर होने वाला सरकारी खर्च आजादी के बाद से ही लगातार बढ़ता जा रहा है जिसका सीधा कुप्रभाव सरकारी सरकारी खजाने एवं अर्थ व्यवस्था पर पड़ रहा है।सरकारी खर्चों एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े धन का सारा बोझ देश की जनता को उठाना पड़ता है और उसकी भरपाई विभिन्न रूपों से उसे ही करनी पड़ती है।

आजादी मिलने के बाद पहली बाद शुरू हुए चुनाव में सरकारी खजाने के मात्र 12 लाख रुपए ही खर्च हुए थे। इसके बाद अगले चुनाव में यह बढ़कर 17 लाख फिर 22 लाख रुपए खर्च हुए थे। यह चुनावी खर्चा आजादी के बाद से ही लगातार घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा है और इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव में यह खर्चा बढ़ कर 5 हजार करोड़ हो गया है और आशा की जाती है कि भविष्य में होने वाले चुनाव मे खर्चा वर्कर आसमान छूने लगेगा।सभी जानते हैं कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव ग्राम पंचायत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के साथ ही देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक के लिये होते हैं और चुनाव के बाद मंहगाई बढ़ जाती है। विभिन्न चुनाव के नाम पर खर्च होने वाला सरकारी खजाने का पैसा जो भ्रष्टाचार एवं फिजूलखर्ची की बलि चढ़ता जा रहा है। इसी पैसे से जनमानस से जुड़ी तमाम विकास योजनाओं को पूरा किया जा सकता है।

इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी मिलने के छः दशक बाद भी ग्रामीण स्तर पर पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण हजारों लोग हर साल बेमौत मार रहे हैं और तमाम विकास योजनाओं को पूरा नहीं किया जा रहा है। आज भी जहां तमाम नदियों में पुल न होने से लोगों को जान हथेली पर रखकर जानलेवा लकड़ी के पुल बनाकर नदी पार करना पड़ रहा है तो वहीं गांव में अस्पतालों में दवाओं एवं अन्य संसाधनों का अभाव बना हुआ है।

अगर हम स्वास्थ्य की चर्चा करें तो ग्रामीण स्तर पर बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाओं डाक्टरों एवं उपकरणों का अभाव बना हुआ है जिसे सरकार पूरा नहीं कर पा रही है जिसका खामियाजा गांव कस्बों में रहने वाले मेहनतकश गरीब मजदूर किसानों मजदूरों उठाना पड़ रहा है। सभी जानते हैं कि देश की सबसे अधिक जनता गांव कस्बों में निवास करती है और विभिन्न बीमारियों से ग्रसित रहती है क्योंकि हष्टपुष्ट निरोगी रहने के लिए उसे पर्याप्त पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है। सरकार भले ही अरबों खरबों रुपया इन लोगों के स्वास्थ्य पर खर्च कर रही हो इसके बावजूद आज तक ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में न तो सभी बीमारियों इलाज के लिए डॉक्टरों की व्यवस्था है और न ही पर्याप्त दवाएं एवं उपकरण ही मौजूद हैं। इतना ही नहीं इन अस्पतालों में आजादी के इतने दिन बीतने के बावजूद भी स्वास्थ्य परीक्षण के लिए सभी तरह उपकरण उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। न तो हर तरह की जांचे हो पा रही हैं और न ही जांच करने वाली मशीन भी उपलब्ध हो पा रही है। प्राथमिक अस्पतालों को कौन कहे है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही है और जिसका दुष्परिणाम गरीबों को भुगतना पड़ रहा है। एक तरफ तो सरकार "राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन" के नाम पर अरबों खरबों रुपए खर्च कर रही है वहीं दूसरी तरफ अस्पतालों में सभी तरह की बीमारियों के विशेषज्ञ चिकित्सक एवं गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड मशीनें तक उपलब्ध नहीं है जिसके कारण गर्भवती महिलाओं को इधर उधर भटकना पड़ रहा है।

इतना ही नहीं बल्कि ग्रामीण स्तर पर कौन कहे मुख्य मार्गों एवं राजमार्ग के किनारे ट्रामा अस्पताल उपलब्ध न होने से रोजाना होने वाली दुर्घटनाओं से तमाम लोग अकाल काल के गाल में समा रहे हैं। ग्रामीण स्तर के अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उन्हें जिला अस्पताल एवं प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं पर्याप्त दवाएं उपलब्ध न होने के कारण लोगों को प्राइवेट मेडिकल स्टोरों का सहारा लेना पड़ रहा है जहां पर दो के बदले 2 सौ की दवा खरीदनी पड़ रही है।

जनमानस से जुड़ी हुई अन्य तमाम योजनाओं का धना भाव में पूरी नहीं हो पा रही है और सरकारी खजाने का जितना पैसा चुनाव कराने रूम भ्रष्टाचार में खर्च हो जाता है उसी पैसे से जनमानस की जिंदगी से जूही तमाम समस्याओं का निदान किया जा सकता है।

धन्यवाद।। भूल चूक गलती माफ।।



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