क्या रंग लाएगी भाजपा-सुभासपा गठबंधन को लेकर बनी असमंजस की स्थिति?


सम्पादकीय - जगदीश सिंह

रोना पङता है एक दिन मुस्कराने के बाद?
अकेला पङ गया हूँ है गठबन्धन से निकल जाने के बाद।


सुभासपा सियासत के दांव पेंच में सह मात का खेल खेलते खेलते औंधे मुंह गिरी खत्म हो गयी दादागिरी?

सियासत का ऊँट कब किस करवट बदल जाता है, आप ने केवल सूना होगा लेकिन अब देखने को भी आजकल खूब मिल रहा है। इस चुनाव में हकीकत छन छन कर बाहर आ रही है। ये तो स्वार्थ का बन्धन है, गठबन्धन है। जब तक मतलब है तभी तक अभिनन्दन है वन्दन है। फिर तो सब कुछ यथावत नहीं होता कोई स्पंन्दन है।

स्नेह का दीपक तभी तक जलता है जब तक नेह की बाती दीपक में रहती है ज्यों ही स्वार्थी तिलिस्म का तेल खत्म हुआ सब विलुप्त हो जाता है। कहा भी गया है कि
स्वार्थ कि रस्सी से मजबूत बन्नधन नहीं बँध सकता है। आज कल "सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी" का अस्तित्व ही दांव पर लग गया। कल तक बहकी बहकी बातें करने वाले नेता जी अब मिमियां रहे हैं। ना घर के हुए, ना घाट के अपने समाज से भी गये गठबन्धन बन्धन से भी मुक्त हो गये। खिसीयानी बिल्ली खम्भा नोचने वाली बात हो गयी है। बेचार ने आव देखा न ताव अपने प्रत्याशियों की घोषणा धङाधङ कर दिया। पार्टी की झोली भर दिया लेकिन अब भी आस लगाये है शायद इस दलदल में कमल का सहारा मिल जाये? लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिङीया चुग गयी खेत? कोई पूछने वाला नहीं है। हर तरफ छीछालेदर ना किसी का साथ अन्दर ना बाहर। पार्टी के झण्ङा के तरह ही चेहरा पीला पङ गया। बहादुरी का बखान भी उस कहावत के सरीखे हो गया कि बाप हमारा बाघ से लङ गया, तो हुआ क्या बाघ बाप को मारकर खा गया? बस यही बात अब नेता जी की है। बहादुरी का ङंका बजाते बजाते खुद ही बजने लगे है। दुसरे को तो पिघला नहीं पाये खुद ही पिघलने लगे।अब जरा उनकी सुने?

रहेगा किस्मत से यही गिला जिन्दगी भर।
जिसको पल पल छला अब उसी के किये से तङप रहे हैं।।


सियासत की रियासत में बेताज बादशाह बनने की तमन्ना अब धराशायी होती जा रही है। अब तो लोग कह रहे है कि गए मियाँ रहीमन, ऐही मन ना वो ही मन बात भी सही दिखाई दे रही है।

कल तक लकधक गाङीयों के काफिले में राजशाही सत्ता की गर्मी लिये गरीब असहाय लाचार मजलूम के बीच बहादुरी दिलेरी का बखान करने वाले जहूरावादी नेता जी का रंग ऊतर गया है। एक शायर की यह बात सही बैठती है नेता जी पर कि

तुमको तो हर हाल में इसकी सजा मिलनी थी।
तूने तो सियासत में बङा रंग जमा रखा था।।


वास्तविकता के धरातल पर सिद्धान्त विहीन सियासत में दन्त विहीन शेर की उपाधि लेकर कब तक जनता को जाति बिरादरी में भेद पैदा कर सियासत की रोटी सेकते रहोगे? सत्ता का सुख पाकर बेहाल हो गये। मन्त्री का ओहदा पाकर माला माल हो गये लेकिन सियासत की गुणा गणित में फेल होकर सियासी मंच पर अब कंगाल हो गये। देखना है वख्त के तराजू पर जातिवाद के जहरीले बीज को बोने वाले नेताओं को दर्द से कराहती इन्सानियत शर्मशार होती मानवता लहूलुहान होती व्यवस्था घायल पङी है। आस्था के बीच बर्बाद होती भाईचारगी और समरसता के बिखङित होते दर्दनाक हादसों के सानिध्य में चल रहे लोकतन्त्र के महापर्व में इन समाज के दुश्मनों को जनता धीक्कारती है या आरती उतारती है। कल का सूरज हँसता मुस्कराता सदियों से चली आ रही परम्परा के बीच बोझील कदमों से आगे बढ रहा है। लोकतन्त्र के महापर्व में ताजपोशी के इतिहास का गवाह बनाने के लिये देखना है आने वाले कल में किसको किसको दिल्ली की बादशाहियत में हिस्सेदारी मिलती है। वक्त की घङी तो कभी रूकती नहीं लोग आते है चले जाते है। इतिहास आने वाले दिनो में उन्हीं का बखान करता है। जो गिरते गिरते सम्भल गया। जो फिसल गया वो वो बिछङ गया। अब तो गांवों में भी लोग ङायलाग बोल रहे हैं अब तेरा क्या होगा कालिया? यह चर्चा तो निश्चित रूप से छोङ रहा है निशान सवालिया? छ: छ: लोगों के साथ खुद लाल बत्ती लगाने के दिन लद गये। सियासत के दाव पेंच में फस कर उलझ गये। अब तो कहा जा रहा है बस एक ही उल्लू काफी था बर्बाद-ए-गुलिस्ता करने को, अब हर शाख पर उल्लू बैठा है अन्जाम गुलिस्तां क्या होगा?

मऊ जनपद की घोसी संसदीय सीट पर उम्मीदवारी की दावेदारी का खेल फेल हो गया।
अब ना स्नेह का दिया, ना नेह की बाती, ना अब कोई दुल्हा है, ना बाराती? बस देखते जाईये आने वाला कल कौन सा इतिहास बनाता है? किसकी ताजपोशी करता है? अब न किसी के साथ से सियासत है न किसी के भीतरघात से बची रियासत है। सबको अब अपने पर रोना आ रहा है। कौन किसी गैर के लिये रोता है?

कल तक सब कूछ बर्दाश्त करने वाले अब किनारा कर लिया ये कहते हुए कि

चलती रहेगी महफील तेरे बगैर भी।
एक तारा टुटने से फलक सूना नहीं होता।



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