डिग्री विवाद और इसके सम्बंध में संवैधानिक पहलू


सम्पादकीय - जगदीश सिंह

कब से दूर सुहाने सपने, टूट गया विश्वास हमारा।
पथरा गयी आँखे अब मेरी, जीवन अब जीने से हारा।
हमें तिमिर ने बहुत छला है और नहीं छल पायेगा।
बाहर तो बाहर अब भीतर भी उजियारा भर जायेगा।


सियासत की आँधी आजकल सर्वनाश विनाश का आभास करा रही है। इस देश की लोकतांत्रिक मर्यादा रोजाना खंङित हो रही है। बदजुबानी की कहानी चर्चा में है। सियासत के सपूत ना देश भक्त हैं ना देश के प्रति आशक्त है बल्कि देश की जनता के दुख दर्द से भी विरक्त है। इनके घङियालू आँसू दिखावटी दरियादिली और झूठ की रोजाना लिख रही इबारत है। फिर भी मेरा भारत महान है, क्योंकि यही तो हिन्दुस्तान है?

देश की व्यवस्था को बिगाङते हैं बनाते हैं। लोगों के बीच में दकियानूसी वादा करते हैं सियासत का चुनावी सफर रूकते ही भूल जाते हैं। ना तो वादा याद रहता है ना मर्यादा याद रहती है। बस अखबार की लाईन ताजा याद रहती हैं। हम किसी एक दल की बात नहीं करते सियासत का रंग तो एक ही है, जो भ्रष्टाचार के रंग मे रंगा हुआ है। किसी का कम किसी का अधिक लेकिन रंगे सभी है। आज चुनाव चरम पर है सारी दूनिया की नजर भारत पर है। सियासत के अखाङे में अनपढ गंवार भ्रष्टाचारी गैंगवार लूटेरे शामिल हैं, बनाने के लिये सरकार अलग अलग खेमों में सियासत के सुरमा एक दुसरे पर तंज कस रहे है। किसी की ङिग्री मांग रहे हैं तो किसी से ऐफिडेविड मांग रहे हैं। ये अजीब हैं क्योंकि जब देश के संविधान में चुनाव लङने के लिये शिक्षा निति लागू नहीं है, तब ङिग्री के पीछे इतनी बहस क्यों हो रही है समझ से परे है। इस देश में चपरासी के लिये भी हाईस्कूल से कम नहीं चाहिये लेकिन संसद विधानसभा चलाने के लिये अनपढ गंवार शराबी भी चलते हैं। वाह रे! संविधान बनाने वाले क्या सोच रहे थे। आज महानता का बखान होता है एक छोटी सी गलती से संविधान की धज्जीयाँ उङ रही हैं। कश्मीर जैसा राज्य आज अलग देश बनाने की बात करता है। आखिर यह किसकी देन है? कौन है इसका जिम्मेदार? जब नींव कमजोर होती है तो दिवारें दरकती जरूर है। यह कहावत तो पहले से मशहूर है। वर्तमान परिवेश में जब सारी दुनिया भारत को सलाम कर रही है, तब सियासत के जहरीले जानवर देश की व्यवस्था को ङंस रहे हैं।

कुछ सियासतबाज़ भारतीय होने का सबूत दे रहे हैं। कुछ ङंकल प्रजाति के सियासती सुरमा देश की सर्वोच्च कुर्सी का ख्वाब देख रहे हैं जिनकी भाषा अलगाववादियों को समीकरण दे रहीं है। रास्ता बता रही है गद्दारी की किताब के इबारत पर मोहर लगा रही है।

आम आदमी इन गन्दे सियासतबाजों के गन्दे तंज से रंज हैं। बात घर तक होती तो समझ में आती लेकिन बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी। सारी दुनिया देख रही है सोच रही है कि क्या यह वही भारत है जहाँ तहजीब तरीका सम्मान शिक्षा के लिये विश्वगुरू के रूप में विख्यात रहा है। जिस देश में स्वामी विवेकानन्द जैसा महान विचारक सुभाष चन्द जैसा बहादुर जाबांज भगत सिंह, चन्द्रशेखर जैसा महान क्रांतिकारी वीर शिवाजी महात्मा गांधी जैसा नेता राणा प्रताप जैसा योद्धा पैदा हुए थे।कभी मर्यादा इस देश की आन बान शान थी। आज सरेआम नीलाम हो रही है। न भाषा पर नियन्त्रण न वाणी पर लगाम। हर सियासतबाज का दाव पर लगा है अभिमान। कल का सवेरा किस तरह का लेकर आता है हिन्दुस्तान थोङा और इन्तजार करे अपने कीमती वोट को सदुपयोग करे देश की व्यवस्था को बदलने की जिम्मेदारी आप की है।

वास्तविकता के धरातल पर इस देश की विखंङीत होती व्यवस्था में लोगों की आस्था पर लगातार कुठाराघात हो रहा है। हर तरफ एक आलग तरह का माहौल बनता जा रहा है। जहां विषमता की खाई लगातार बढ रही है मानवता का हनन हो रहा है और उसको बढावा दे रहे हैं। इस देश के गद्दार सियासतबाज अपनी कुर्सी हलामत रखने के लिये वसुधैव कुटूम्बकम के फार्मूला का तिलांजली दे दिये मन्दिर में दिखावटी पूजा करते हैं, मस्जिद में फतवा जारी कराते हैं। जिस तरह से माहौल बदल रहा है लोगों के दिल दिमाग में जहर घुल रहा है, सियासत के जहरीले नाग समाज मे जिस जहर का विष वमन कर रहे हैं। उसका असर हमेशा कायम रहेगा जो मानवता के लिया घातक साबित होगा? इसका दूरगामी परिणाम देश को झेलना पङेगा। चुनाव कुछ दिन में खत्म हो जायेगा लेकिन जिस जहरीले अल्फाज़ को मतलब के लिये परोसा गया है देश की जनता के बीच वह आने वाले कल के लिये बहुत ही घातक साबित होगा?

चमन को फूँक कर बैठी बिजलियाँ खामोश हैं। उङाके खाके नशे मन आँधियां खामोश हैं।
लिखेगें कैसे जिन्दगी का अफसाना। कलम में जोश नहीं उंगलियाँ खामोश हैं।।


जय हिन्द



अन्य समाचार
फेसबुक पेज