उसे क्या मालूम था कि जिंदगी की आखरी शाम होगी ......


तहलका सम्पादक - अरूण सिंह "भीमा"

बाहर गई सब्जी लेने, घर में पड़ा पति का शव

मऊ आख़िर उसे क्या मालूम कि आज उसकी आख़री शाम होगी?

सब्जी लेने बाहर गई रीता सिंह जब अपने ही घर के दहलीज पर पहुची तो उसके साथ जीने मरने की कसमें खाने वाला, उसका सुहाग लहूलुहान हो कर हमेशा के लिए मौत की गहरी नीद में सो चुका था। उसे पछतावा हो रहा है आख़िर क्यों बाहर सब्जी लेने के लिए गई? .... घर होती तो बदमाशों से संघर्ष करती। शायद उसकी जिंदगी की आख़री शाम थी। लहूलुहान पड़ा लेखपाल धीरज सिंह मानो कोई सवाल कर रहा हो।

जिंदगी और मौत के फसानों ने ये कैसा क्रुर मज़ाक कर डाला। जो ताउम्र पत्नी रीता के लिए नासूर बन गया। घर पर उमड़ी भीड़ अपनी की दहाड़ करुण क्रंदन से पत्थर दिल भी पसीज जा रहा था। सुहागन बन आई पति संग एक डोर में बंधी आज वह कटी पंतग बन गई। शायद कल की शाम जिंदगी की आख़री शाम, रीता के लिए जीवन भर की टिस दे गई।

घर पर आज भीड लगी है, हो सकता है कल भी रहे। लोग कई दिनों तक सांत्वना भी देगें फिर लोग धीरे- धीरे भूल भी जाएंगे। मगर पत्नी रीता देवी के लिए आजीवन दर्द दे गया। ज़ालिम जिन्दगी ...... जिसकी भरपाई वह कभी भी नहीं कर पायेंगी। "मांग का सिन्दूर" उजड़ गया। जो सपने देखे थे वो भी तिनका-तिनका बिखर गये।



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