बुज़ुर्गों का अकेलापन । जिम्मेदार कौन ?


लेख - प्रदीप पाण्डेय

अकेलापन क्या होता है कभी घर के किसी अकेले बुज़ुर्ग से पूँछ कर देखना चाहिए, जिसे पूरी रात नींद नहीं आती है और हम पूरी रात आराम से सोते हैं और सुबह उठकर बड़े आराम से उन्हें कहते हैं कि पूरी रात नहीं सोते हैं, पता नहीं क्या करते रहते हैं? हमारे जवान हाथ जिन जिम्मेदारियों को निभाते व सँभालते अभी भी कँपकँपाते हैं उन बूढ़े हाथों से हमें पूँछना चाहिए कैसे वो आज भी बेझिझक और बेहिचक उन ज़िम्मेदारियों को उठाते हैं ।

हमारे बीच मे से न जाने कितने लोग ऐसे होंगे जिनके पास समय ही नहीं होता है अपने बुज़र्गो से बात करने के लिए, क्योंकि उनकी नज़र में वो पुराने ज़माने के हैं और बेवजह की सलाह देते हैं और वो कमजोर भी हो चले हैं इसलिए उनसे क्या और क्यों बात करनी और कुछ लोग तो अपने बड़े -बुजुर्गों को धमका कर या घूर कर चुप भी करा देते हैं ।

वो बूढे माँ-बाप जो खुशी-खुशी पूरी उम्र हमारी बक बक सुनते है, उन्हीं से दो बात करने के लिए अब हमारे पास समय नहीं होता है क्योंकि आखिरकार उन्हें हमसे वही घिसी-पिटी बातें जो करनी हैं ।

हमें सोचना चाहिए बुज़र्ग किससे अपने मन की बात करें, किससे अपनी पीड़ा बतायें ? वो तो २४ घंटे खाली हैं, कहाँ जायें क्योंकि उम्र ज्यादा होने से वो ठीक से चल भी नहीं सकते । कौन उनका सहारा बने, क्योंकि वो दूसरों पर निर्भर हो चुके हैं।

उनके मरने के बाद हम बड़े कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, सभी को बुलाते हैं, अच्छे से अच्छा खाना खिलाने का प्रयास करते हैं और पूरे दिन उस बुज़र्ग के लिए बैठते हैं, काश उनके जीते जी हम उनके पास बैठ गए होते तो शायद वो कुछ दिन और जी गए होते ।



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