उपहार .......प्रदीप पाण्डेय


अपनी बात

वर्तमान समय में विभिन्न आयोजन जैसे जन्मोत्सव, विवाह वर्षगांठ, बहुभोज आदि का प्रचलन बढता जा रहा है और उतनी ही तेजी से इन आयोजनों में उपहार देने का प्रचलन बढ रहा है, लोग बडे बडे पैकेटों में महंगे महंगे बस्तु उपहार स्वरूप ले जा रहे हैं, लोग दिल की भावनाएं और प्यार न देख कर उपहार के आकार पर ध्यान देने लगे हैं। शायद इस कारण आर्थिक रुप से कमजोर परिवार इन आयोजनों में सम्मिलित होने में संकोच करते हैं या जाते ही नहीं है ।

मूल्य उपहार का नहीं उसकी उपयोगिता का होना चाहिए । इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि हमें सामने वाले को क्या दिया ? अपितु यह बात मायने रखती है कि वह वस्तु हमारे किस काम आयेगी? किसी गरीब बच्चे को किताब देने से ज्यादा श्रेष्ठ है, उसे इस काबिल बनाने का प्रयास किया जाए कि वह उस किताब को पढ़ भी सके। उपहार मूल्यवान ही हो यह जरुरी नहीं मगर उपयोगी हो यह जरुरी है।

उपहार प्यार से ही देना चाहिए प्यार के बदले नहीं ।

जिस दिन दिल मे प्यार होगा फिर हाथ मे उपहार होगा, उस दिन सामने वाले के आँखों मे हमारे लिए आंसु होगा। आज का इन्सान उपहार बाँटना तो सीख गया है मगर प्यार बाँटना भुल गया । काश आज के इस वैज्ञानिक युग मे हम अपना थोडा थोडा प्यार डब्बों मे बन्द करके दूसरों को उपहार देना सीख जाते !

निज विचार है, अपवाद सम्भव है, यह भी सम्भव है वर्तमान आधुनिक समाज के अनुसार यह विचार ही गलत हो ।



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